गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

'आप' का प्रयोग:
पूरी दिल्ली बनी पंचायत
दिल्ली में सरकार बनाने के लिए उहापोह की स्थिति के बीच आम आदमी
पार्टी ने जनता का मत जानने के लिए लाखों चिट्ठियां भेजने का निर्णय
लिया है। इसके अलावा एसएमएस, फोन कॉल और फेसबुक के माध्यम
से भी इस बारे में जनता से राय मांगी जा रही है कि 'आप' दिल्ली में
सरकार बनाए या न बनाए। संचार के विकसित साधनों और सोशल
मीडिया के इस जमाने में 'आप' पहले भी कई तरह के अनूठे प्रयोग
करती रही है, लेकिन सरकार बनाने के लिए जनमत जानने का उसका
यह तरीका भारतीय लोकतंत्र में पहली बार हो रहा है। अगर यह प्रयोग
सफल रहता है तो भारत वास्तव में इस मामले में लोकतांत्रिक देशों का
अगुआ बन जाएगा। कई लोगों की यह राय है कि एक बार जनता अपना
मत दे चुकी है, तो फिर उसकी राय जानने की यह कवायद वास्तव में
जनता को बेवजह तंग करने जैसा ही है। हालांकि, अभी तक त्रिशंकु
विधानसभा या लोकसभा की स्थिति में जिस तरह की खरीद-फरोख्त का
दौर चलता रहा है, उसे देखते हुए 'आप' की यह कवायद भी राहत देने
वाली ही है। अच्छी बात यह है कि अब जनता की भूमिका सिर्फ चुनाव
होने तक सीमित नहीं रह जाएगी, बल्कि सरकार बनाने में भी उसकी
राय महत्वपूर्ण होने जा रही है। देश में बढ़ते युवा मतदाताओं, जो ज्यादा
शिक्षित और टेक्नोफ्रेंडली है, और संचार क्रांति की वजह से इस तरह के
प्रयोग करने अब आसान हो गए हैं। तो पहले जैसे ग्राम पंचायतों में हाथ
उठवा कर जनता की राय ली जाती थी, अब संचार साधनों और सोशल
मीडिया की बदौलत पूरा एक प्रदेश या  देश ही पंचायत में तब्दील हो सकता है।
(बिजनेस भास्कर में 19 दिसंबर को प्रकाशित मेरे द्वारा लिखा गया संपादकीय )

बुधवार, 27 नवंबर 2013

दुनिया भर के लिए राहत भरी खबर है जेनेवा समझौता

ईरान और दुनिया के छह बड़े देशों के बीच इस शनिवार को जेनेवा में नाभिकीय कार्यक्रमों पर हुआ अंतरिम समझौता मध्य एशिया और दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक राहत भरी खबर है। इस खबर के असर से ही सोमवार को ब्रेंट क्रूड ऑयल भारी गिरावट के साथ 108 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गया और इसके असर से भारत में बीएसई सेंसेक्स में 388 अंकों का उछाल देखा गया। इस समझौते से खासकर भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, टर्की और ताइवान को फायदा हो सकता है, जो अब भी ईरान से तेल खरीद रहे हैं। भारत को इसका कितना फायदा होगा और फायदा मिलने में कितना समय लगेगा, यह अभी साफ नहीं है। ईरान पर प्रतिबंध के पहले वहां से 23 देश तेल आयात करते थे, लेकिन 2012 में लगे प्रतिबंध के बाद सिर्फ उक्त छह देश ही तेल का आयात कर रहे हैं। हालांकि, भारत जैसे कई देशों ने आयात में भारी कटौती भी कर दी थी। अभी यह अंतरिम समझौता है, लेकिन भारत जैसे देशों को इस बात के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना चाहिए कि यह एक पूर्ण समझौते में बदले और ईरान के ऊपर लगे तेल निर्यात के सभी महत्वपूर्ण
प्रतिबंधों को खत्म किया जाए। इससे जो प्रतिबंध हटेंगे उससे ईरान को तेल बेचने पर करीब 4.2 अरब डॉलर का राजस्व हासिल होगा। यह समझौता यदि कारगर होता है और इसके तहत गहन बातचीत की प्रक्रिया चलती है तो यह सबके लिए काफी फायदे की बात होगी। लेकिन कोई अंतिम समझौता नहीं हो पाया तो इसके
बाद महाशक्तियों को ईरान पर सैन्य कार्रवाई करने का पुख्ता बहाना मिल जाएगा कि अब कोई रास्ता बचा ही नहीं है। जो भी हो, भारत को ऐसे प्रयास का तहे दिल से समर्थन करना चाहिए क्योंकि ऊर्जा जरूरतों के लिए हम पूरी तरह से आयातक देश हैं और इस क्षेत्र में स्थिरता आने से ईरान सहित अन्य देशों में भारत के निर्यात को भी मजबूती मिलेगी। खासकर ईरान में जहां प्रतिबंध लगाए जाने के बाद निर्यात पर काफी बुरा असर पड़ा है। वर्ष 2012-13 में ईरान को भारतीय निर्यात महज 3.7 अरब डॉलर का हुआ है जो कि क्षमता से बहुत कम है। इस समझौते से भारत को कितना फायदा होगा इसे लेकर जानकारों में अलग-अलग राय है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने यह साफ किया है कि इससे तेल व गैस पाइपलाइन के बारे में ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि पाइपलाइन से जुड़े कई ऐसे मसले हैं जिनको सुलझाने में लंबा समय लग सकता है। ईरान से आने वाले टैंकरों के बीमा पर भी यूरोपीय संघ ने रोक लगा दी थी, लेकिन अब इस तरह के प्रतिबंध भी हट जाएंगे जिसके बाद भारत व टर्की जैसे देशों को तेल आयात सुलभ हो जाएगा। भारतीय तेल मार्केटिंग कंपनियों का कहना है कि इससे वे ईरानी तेल आसानी से मंगा सकेंगी, लेकिन ईरान से तेल आयात तात्कालिक तौर पर तो बढऩा संभव नहीं लगता। भारत ने वर्ष 2011-12 में ईरान से 1.74 करोड़ टन और 2012-13 में महज 1.4 करोड़ टन क्रूड ऑयल का आयात किया था। ऐसा माना जा रहा है कि ईरान सरकार पर दबाव बनाने के लिए भारत तेल आयात में कटौती अभी बरकरार रखेगा।
(26 नवंबर 2013 को बिज़नेस भास्कर में मेरे द्वारा लिखा गया सम्पादकीय )