शनिवार, 17 मई 2014

इसके पहले भी कई बार आ चुकी है ‘सुनामी‘
मेरे एक दोस्त इसे ‘सुनामी‘ बता रहे थे, वह कह रहे थे यह ऐतिहासिक है। उनका मानना है कि इतने ‘जबर्दस्त‘ जनादेश का मतलब है कि अगले 15-20 साल के लिए भाजपा को देश पर राज करने का अधिकार मिल गया है और हारने वाली कांग्रेस हमेशा के लिए खत्म हो चुकी है। मैंने उनसे पूछा कि आपको पता है कि भारतीय चुनाव के इतिहास में इसके पहले ‘सुनामी‘ कब-कब आई थी। तो उन्होंने कहा, ”मैं तो अयोध्या आंदोलन के दौर में पला-बढ़ा हूं, मैं उसके पहले का इतिहास नहीं जानता और जानना भी नहीं चाहता। मेरे संस्कार ज्यादा पढ़ने-लिखने से मना करते हैं क्योंकि अगर मैंने ज्यादा पढ़ लिया तो मेरे ज्ञान चक्षु खुल जाएंगे, फिर मैं ‘हे मोगैम्बो‘ की तरह किसी एक विचारधारा की गुलामी कैसे करूंगा?“  मैंने कहा कि कोई बात नहीं, आपकी तरफ से मैं ही इतना कष्ट कर लेता हूं। तो दोस्तों 2014 के चुनाव में बीजेपी के 283 सीट हासिल करने को आधार पर मैंने पता लगाने की कोशिश की आखिर ऐसी सुनामी इस देश में पहले कितनी बार आई थी।
शुरुआत करते हैं पहले आम चुनाव 1951-1952 से- इसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कुल 489 सीटों में से 364 सीटें जीत कर और 45 फीसदी वोट हासिल कर सत्ता में आई थी।
दूसरे आम चुनाव 1957- कुल 490 लोक सभा सीटों में से कांग्रेस को 371 सीट और करीब 48 फीसदी वोट
तीसरे आम चुनाव- कुल 494 सीटों में से कांग्रेस को 361 सीट और 45 फीसदी वोट

चैथे चुनाव 1967- कुल 520 सीटों में से कांग्रेस को 283 सीटें हासिल हुईं
पांचवें लोक सभा चुनाव 1971- कुल 518 सीटों के चुनाव में कांग्रेस को 352 सीटें और 44 फीसद वोट हासिल हुए।
छठे लोक सभा चुनाव- जनता पार्टी को 345 सीटें और 52 फीसदी वोट मिले, कांग्रेस को करीब 217 सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा
सातवें लोक सभा चुनाव 1980- कुल 542 सीटों में से कांग्रेस को 374 सीटें हासिल हुईं
आठवें लोक सभा चुनाव 1984- राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को कुल 533 सीटों में से 414 सीटें और 51 फीसदी वोट हासिल हुए। इतनी सीटें अपने आप में एक रिकाॅर्ड हैं, लेकिन इसे भी ‘सुनामी‘ नहीं कहा गया, बल्कि इंदिरा गांधी की मौत के बाद उपजी सहानुभूति लहर बताया गया।
हालांकि, यह नहीं पता चल पाया कि उक्त चुनावों में नेताओं के पीआर और चुनाव प्रचार व मार्केटिंग पर कितने हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाते थे। यह भी नहीं पता चल पाया कि तब उद्योगपति, मीडिया पार्टियों को कितना सहयोग करते थे, कोई अपना हेलीकाॅप्टर देता था या नहीं। एक्जिट पोल, सर्वे वगैरह तो होते नहीं थे, दिन-रात चीखने वाले चैनल भी नहीं थे, फिर मीडिया से टाई-अप कैसे किया जाता था, इसकी भी कोई जानकारी नहीं मिल पाई है।
यह सब आंकड़े सुनने से मेरे दोस्त का सिर चक्कर खाने लगा। उन्होंने कहा कि आप मेरे जन्म से पहले का इतिहास क्यों बताते हैं, इतिहास वहीं से शुरू होता है जबसे मैं पैदा होता हूं, देखना मित्र कांग्रेस बिल्कुल खत्म है। मैंने पूछा कि कई दशकों तक विपक्ष में रहने और 1984 में महज दो सीटों पर सिमट जाने के बावजूद जब भाजपा (जनसंघ) खत्म नहीं हुई तो कांग्रेस कैसे खत्म हो जाएगी। तो उनका कहना था कि बीजेपी नहीं खत्म हो सकती क्योंकि उसे आसाराम, बाबा रामदेव जैसे तमाम संतों का आशीर्वाद हासिल है, खत्म होने का अधिकार सिर्फ कांग्रेस और केजरीवाल को है।