गुरुवार, 25 जून 2015



जानें पिता का जीवन संघर्ष

आज तमाम ऐसे लोग हैं जो काफी बेहतरीन जिंदगी जी रहे हैं। उन्‍होंने अच्‍छे स्‍कूल में पढ़ाई की, बढि़या कपड़े पहनते हैं, अच्‍छे से अच्‍छे गैजेट इस्‍तेमाल करते हैं और अच्‍छी नौकरी कर अपना सफल जीवन जी रहे हैं। उनके पिता ने पढ़ाई से लेकर गैजेट, बाइक जैसे संसाधनों तक कहीं कोई कमी नहीं होने दी। लेकिन क्‍या उन्‍होंने सोचा है कि आज जिस पिता की बदौलत वे इतनी अच्‍छी जिंदगी जी रहे हैं,  उन पिता ने अपनी जवानी या पूरी जिंदगी कैसे गुजारी है, उन्‍होंने अपने किन सपनों, आकांक्षाओं को दफन किया है? इस फादर्स डे पर आप यह जानने की कोशिश कर सकते हैं कि आपके पिता की ऐसी कौन-सी अधूरी ख्‍वाहिशें हैं, जिन्‍हें अब आप पूरा कर सकते हैं, जैसे- हवाई यात्रा, किसी खास स्‍थान का पर्यटन या और कुछ।
इस फादर्स डे पर हम क्‍यों न अपने पिता के मन को टटोलें, जानें कि क्‍या अब भी कोई इच्‍छा उनके मन में दबी रह गई है, जिसे आप पूरा कर सकते हैं। हो सके तो कुछ दिन की छु्ट्टी लेकर पिता के साथ रहें, शायद यही उनके लिए फादर्स डे का सबसे बड़ा गिफ्ट साबित हो। उनके साथ बैठकर उनके अतीत को जानने की कोशिश करें, यह जानें कि उन्‍होंने अपने जीवन में कितना संघर्ष किया है।
घर आ जाओ बेटा
कहते हैं कि पिता एक ऐसे क्रेडिट कार्ड हैं, जिनके पास बैंक बैलेंस न होते हुए भी वे हमारे सपने पूरे करने की हर कोशिश करते हैं। पिता किसी को कुछ न देते हुए भी बहुत कुछ दे जाते हैं, तमाम लोगों के तो रोल मॉडल ही पिता होते हैं। तो हम पिता के इस त्‍याग और संघर्ष के बदले उन्‍हें क्‍या दे सकते हैं? यह जरूरी नहीं कि आपके पिता की इच्‍छा तीर्थ पर जाने या हवाई यात्रा करने की ही हो, उनकी इच्‍छा कुछ भी हो सकती है, जिसको आप आसानी से पूरी कर सकते हैं। बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनंत के मार्मिक अनुभव को आपसे साझा करता हूं। कुछ दिनों पहले उन्‍होंने अपने पिता को फोन कर कहा, ‘पापा इस 21 जून को फादर्स डे है, मैं चाहता हूं कि उस दिन आपको कोई गिफ्ट दूं या आपकी ऐसी किसी इच्‍छा को पूरा करूं, जो अधूरी रह गई हो, बताइए मैं आपके लिए क्‍या कर सकता हूं?’ उनके पापा ने जवाब दिया, ‘बेटे तुम घर आकर साथ हफ्ता भर गुजार लो, यही मेरे लिए सबसे बड़ा गिफ्ट होगा।‘ अनंत जॉब की व्‍यस्‍तता की वजह से पिछले दो साल से बिहार के अपने गांव नहीं जा पाए हैं।
हर पिता हैं एक कहानी
हर पिता अपने आप में एक अलग कहानी होता है। सबके पास अपने पिता के बारे में कोई न कोई कहानी होगी। आपको ऐसी ही कुछ मार्मिक कहानियों से रूबरू करता हूं। 
आनंद के पिता एक पोस्‍टमास्‍टर थे और अब रिटायर्ड जीवन बिता रहे हैं। जब आनंद का खून जवान हुआ, तब ही से पिता से उनके रिश्‍ते बिगड़े हुए थे। उनके पिता से हमेशा वैचारिक मतभेद रहे और कई बार तो उनके बीच महीनों तक बोलचाल नहीं होता था। पर आज जब आनंद खुद पिता बन गए हैं और एक मेट्रो शहर में रहते हुए सफल करियर के मुकाम पर हैं, तो उनको पिता की बहुत याद आती है। हाल में वे लखनऊ से दिल्‍ली तक फ्लाइट से अपने पिता को साथ लेकर आए। उनके पिता बेहद द्रवित हो गए, उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े। ट्रेन के एसी कोच में भी कभी न बैठने वाले उनके पिता ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कभी प्‍लेन में बैठेंगे और वह भी उस बेटे की वजह से, जिससे उनके रिश्‍ते इतने तल्‍ख थे।
फटे जूते क्‍यों पहनते हैं पिता   
एक पिता दीक्षा के भी हैं। एक इंजीनियरिंग कॉलेज की स्‍टूडेंट दीक्षा अक्‍सर सोचती रहती हैं कि उनके पिता ब्रांडेड कपड़े क्‍यों नहीं पहनते, पैंट-शर्ट की क्रीज की परवाह क्‍यों नहीं करते, दशकों पुरानी घड़ी अब भी कलाई पर क्‍यों बांधे रहते हैं, फटे हुए जूते भी बार-बार सिलवाकर क्‍यों पहनते रहते हैं? परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब भी तो नहीं है। जी नहीं, ऐसा नहीं कि दीक्षा के पिता कोई संत हैं, जिनकी कोई आकांक्षा, कोई सपना न हो। शायद दीक्षा के पिता ने उनको महंगे गैजेट, ब्रांडेड कपड़े, अच्‍छा एजुकेशन दिलाने के लिए अपने सारे सपने दफन कर दिए हैं। वे जानते हैं कि महंगाई के इस जमाने में और सीमित आय में सबके सपने पूरे नहीं हो सकते।
हंसते क्‍यों नहीं पिता
एक पिता भार्गव के भी हैं। एक रियल एस्‍टेट कंपनी में एग्जिक्‍यूटिव भार्गव से जब मैंने उनके पिता के बारे में पूछा तो बोले, ‘पिता के बारे में तो मैं यही सोचता रहता हूं कि वे हंसते क्‍यों नहीं, घर में पार्टी हो और जबर्दस्‍त म्‍यूजिक बज रहा हो, तो भी उनके पैर कभी थिरकते क्‍यों नहीं? भार्गव को इसका जवाब अभी नहीं मिला है। भार्गव के पिता शायद इसलिए नहीं हंसते हों, क्‍योंकि परिवार के लिए जिंदगी की जरूरतों को जुटाने की जोड़-तोड़ में दिमाग और शरीर को वर्षों तक बुरी तरह उलझाए रहने से उनका स्‍वभाव ही ऐसा हो गया है।
दिनेश अग्रहरि
                                  


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